बचपन की नादानी में, कुछ अद्भुत सपनों के आस जगते रहे
परियों जैसे पंख लगा नभ में, न जाने कितनी बार हम उड़ते रहे
ज़िन्दगी के दौर में उम्र ज्यूँ चड्ती गयी, उलझने बढ़ते गए
सपनों के चादर से अरमानो के धागे खिंच गए, और इक- इक करके टूटते गए
छत पर बैठे सोचता हूँ काश वो सितारे अम्बर से ज़मीन पे आ गए होते
तो उम्मीद भरी आँखों से, मासूमियत भरी हाथों में, हम तारे पा गए होते
ना द्वेष होता, ना छल होती, न लोगों से जलन होते
भरे-पूरे खुशी से हम, हंसी बन, सारे जहाँ में छा गए होते
सितारों से भरे आसमान देख कर, मेरे सपने अब भी अनंत होते गए
पर ज्यों टूट कर कुछ गिरते रहे तारे, कुछ ख्वाबो के अंत होते गए
परियों जैसे पंख लगा नभ में, न जाने कितनी बार हम उड़ते रहे
ज़िन्दगी के दौर में उम्र ज्यूँ चड्ती गयी, उलझने बढ़ते गए
सपनों के चादर से अरमानो के धागे खिंच गए, और इक- इक करके टूटते गए
छत पर बैठे सोचता हूँ काश वो सितारे अम्बर से ज़मीन पे आ गए होते
तो उम्मीद भरी आँखों से, मासूमियत भरी हाथों में, हम तारे पा गए होते
ना द्वेष होता, ना छल होती, न लोगों से जलन होते
भरे-पूरे खुशी से हम, हंसी बन, सारे जहाँ में छा गए होते
सितारों से भरे आसमान देख कर, मेरे सपने अब भी अनंत होते गए
पर ज्यों टूट कर कुछ गिरते रहे तारे, कुछ ख्वाबो के अंत होते गए
Nice one..... (y)
ReplyDelete