कौन था?

मैं नहीं था फिर सर--बाज़ार कौन था?
जो कर रहा था बिकने से इनकार कौन था?
गर खींच जंगलों की तरफ ले जा रहे थे लोग,
सूखी हुई ज़मीन का वफादार कौन था?

अब तक सुने देती है झंकार सी कोई,
जिन्दों से पूछता हूँ गिरफ्तार कौन था?
सूरज तो कैद रहा मेरे घर में उम्र भर,
शहरों के बदन पे शरार-बार कौन था?

चेहरे पे मेरे देख के खुशियों की झलक,
आइना पूछता है के बीमार कौन था?
मेरे लिए ही भेजी थी दरिया ने एक मौज,
मेरे सिवा रेत का दीवार कौन था?

सिमटी हुई थी मेरे अंदर तो कायनात सारी,
हट कर मेरे वजूद से आया यार कौन था?
जिसने घुरूर-इ-शाम से सुबहें निकल लीं,
बे बाज़ुओं का ऐसा आलमदार कौन था?

बस एक दश्त-इ-हवा चलती रही हर वक़्त,
उस सूखी हुई पत्ती का मंझधार कौन था?
जिसको तमाम उम्र न भूला मेरा वजूद,
गुजरी कहानियों का वो किरदार कौन था?

सोने दिया मुझको कराहों की शोर ने,
कल रात मेरे गावं में बीमार कौन था?
जिसने तुम्हे तराश के इंसान बना दिया,
पत्थरों, बताओ वो फनकार कौन था?

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