चाय की चुस्की

जुज़ वोही हैं, फिर भी अब ये, वो मज़ा देती नहीं.
बिन तुम्हारे, चाय भी अब, ताज़गी देती नहीं .

न तेरी बाली की खनक, ना वो सुबह का सलाम.
ना तेरी सारंगी की आवाज़ में - वो मेरा नाम.

ना मेरे कांधों को मिलती है तेरे हाथों की दाब.
ना मुझे पुरजोश करते हैं तेरे लब-- गुलाब.

ना मेरी अंगड़ाई, ना बाँहों में कोई गिरफ्तार.
गुदगुदा कर, छूट कर जाता हुआ मेरा शिकार.

ना तेरे पौंछे हुए चेहरे पे वो भीगी जुल्फों की लटें .
ना तेरे कुर्ते की - गुज़री रात की वो सिलवटें.

ना तेरा नादाँ दुपट्टा गिरने को तैयार.
ना मेरी आँखों में शैताँ कोशिश-ए-दीदार.


ना ही बीती बातें करके याद, शरमाना तेरा.
मशवरों से, हर सफ़र आसाँ बना देना तेरा.

ना सुनहरे से सिके, मक्खन लगे, खस्ता से टोस्ट
ना वो प्याली के किनारे चूमते प्यारे से होंट .

ना वो चीनी घोलने में बजने वाला जलतरंग.
ना नए दिन को, नई हिम्मत से, जीने की उमंग.

जुज़ वोही हैं, फिर भी अब ये, वो मज़ा देती नहीं.
चाय की चुस्की, तेरे बिन - ताज़गी देती नहीं

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