मैं समय हुँ

सागरों के द्विप धरा पर, रेतों को दहकते देखा
मैने क्रूर हृदय काटों को, कुन्जों के बीच महकते देखा

मेरे आगे ही मानव ने घुटनों के बल चलना सीखा
मेरे हांथों में प्रकृति ने, निर्ममता मे पलना सीखा

मैने मनु-शत्रुपा का वह श्रिष्टि निरुपण भी देखा
मैने परशुराम जैसों का अखिल विसर्जन भी देखा

मेरे आँगन में ही कन्हैया, गोपी रास किया करता था
शंकर बैठ गोद में मेरी, विष का पान किया करता था

मैने वीरों को गौरव की गाथाएँ गढ़ते देखा है
मैने सरस्वति को अपने गुरुकुल मे पढ़ते देखा है

मैने पृष्ठभूमि देखि है आदर्शों के छवियों की
मैने सुजन कला देखी है माँ कि, गुरु कि, कवियों कि

तुम मुझको क्या देख सकोगे, मैं अजय हुँ, मैं प्रणय हुँ
मैं अधिष्ठा, मैं अजन्मा, मैं समय हुँ, मैं समय हुँ

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